Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १)१३८

सारो बल हारो सु लगाइ।
पुन मूरख पछुतावन लागा।
-करो खोट मैण हुतो अभागा- ॥५६॥
तबि श्री अंगदि करि अुत१ नैन।
दीन भयो पिखि अुचरे बैन।
शेरशाह सोण कछु न बसायो२।
खड़ग हतन हम पर चलि आयो! ॥५७॥
काइर भयो भाज करि आवा।
हमहि सूरता३ चहैण दिखावा।
तबि हुमाअुण बहु बिनती ठानी।
छिमहु गुरू! मैण बड अनजानी ॥५८॥
श्री नानक थे ग़ाति ुदाइ।
तिन की बशिश होति बिलाइ४।
इह का कारन? बूझत आवा।
तुम सौण अुन कौ भेद न पावा* ॥५९॥
श्री अंगद सुनि कै कहि बानी।
कछू बिअदली+ कीनि महानी।
यां ते भयो तोहि त्रिसकारा५।
अबि जे धरति न कर तरवारा६ ॥६०॥
तौ पतिशाहिति अबि ही पावति।
दरशन कौ फल अनद बधावति।
जाइ विलाइत७ अबि फिर आवो।
छत्र तखत दिज़ली पुन पावो ॥६१॥
सुनि इम गयो विलाइत थान।
तहिण ते लशकर लीनि महान।

१अुधर।
२वज़स ना चलिआ।
३बहादरी।
४बितीत होणलगी है।
*पा-तुम मैण अुनमैण भेद न पावा।
+इस तोण सपज़शट है कि श्री गुरू नानक जी दी असीस-इनसाफ दी शरत अुज़ते सी।
५निरादरी।
६हुण जे आपणा हज़थ तलवार ते (साडे मारन लई) ना धारदा।
७अफानसितान, तुरकसितान, ईरान आदि तोण मुराद है।

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