Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) १३५
१५. ।अरदासां-जारी॥
१४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>१६
दोहरा: हरिगुपाल सिख होइ करि,
पिता बिशंभरदास१।
हाथ जोरि बूझन लगो,
श्री सतिगुर के पास ॥१॥
+२जे नहि सिज़ख बिहाल हुइ,
हुवै न सिदकी मेल।
कैसे पाहुल चरन की
सिज़ख बतावहु खेल३? ॥२॥
सतिगुर बोलि सुनाइओ
सुनहु बिशंभर रीति।
बच विशवासी होवना
मो पद राखहु प्रीति४ ॥३॥
५दस अवतार गुर एक सम
जोण जानैण जो मेर।
इकदशमो गुर ग्रंथ जीबाणी सतिगुर हेरि३ ॥४॥
धोइ रुमाल गुर ग्रंथ को
पाहुल लेवै देइ६।
सिदक समालै७ करि कड़ाह
१ते (अुसदा) पिता बिशंभर दास।
+सौ साखी दी इह ७८वीण साखी है।
२जे सिज़ख तिआर बर तिआर (सिंघ ना सज सज़के) होवे सिदकी ते आप दा मेल बी ना हो सके। (जो
चरन पाहुल लै लवे) तां इह खेल (जुगत) दज़सो कि सिज़ख चरनां दी पाहुल किवेण लवे? भाव इह
है कि पाहुल केवल गुरू दे सकदा है। अंम्रित हुण आप ने खालसे ळ छकाअुण दी खुल्ह दे दिज़ती
है, हुण इह दज़सो कि जे कोई सिज़ख होवे तां सिदकी, अंम्रित छक न सके, आप पास पुज़ज ना सके
अुह चरन पाहुल कैसे लवे। ।बहाल=पूरी हालत विच, मतलब है तिआर बर तिआर अंम्रितधारी
सिंघ॥।
३इसदा प्राय पिछले सफे दे अंक ६ विच आ चुका है।
४बचनां ते भरोसा रज़खो ते मेरे चरनां विच प्रीती रखो।
५जो मेरे हन जिवेण दसां गुरू अवताराण ळ इज़क तुल जाणदे हन तिवेण सतिगुराण दी बाणी गुरू ग्रंथ
जी ळ गिआरवेण पातशाह जाणन।
६(अदीखत) लवे ते (दीखत) देवे।
७(पाहुल लैके फिर) भरोसा संभालके रज़खे।