Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) १३८

१५. ।म्रितक गुरमरयादा। भाई जज़लं॥
१४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>१६
दोहरा: सुंदर परमानद को,
अपर सरब परिवार।
जथाजोग मिलि करि सभिनि,
हय होए असवार ॥१॥
चौपई: सभि कुटंब चढि चलो पिछारी।
जथा जोग अपनी असवारी।पुरि खडूर महि पहुचे जाई।
अुतरि तरंग परे तिस थाईण ॥२॥
श्री अंगद के मंदिर गए।
फिरे प्रदछना बंदन किए।
सुभट कुटंब मिले तिह समो।
दरशन परसति करि करि नमो ॥३॥
सुनि करि सुधि दातू सुत आयो।
झुके परसपर अुर हरखायो।
करहु सिवर प्रभू! बिनै बखानी।
सेवौण जथाशकति हित ठानी ॥४॥
श्री हरिगोविंद चंद बखाना।
चहैण आज ही पंथ पयाना।
सिरी ग्रिंथ साहिब सुखरास।
पाठ करावहि हित गुरदास ॥५॥
रहो निहोरति१, दे करि धीर।
चढे पवंगम२ सतिगुर बीर।
रहो अलप दिन पहुचे आइ।
संग सुभट घोरे समुदाइ ॥६॥
तखत अकाल निवाइ सु मौर३।
चलि करि गए दरशनी पौर।
नमो करति अंतर को गए।


१बेनती करदा रिहा (दातू जी दा पुज़त्र)।
२घोड़े ते।
३सीस।

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