Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 125 of 412 from Volume 9

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) १३८

१८. ।दारा विदा,नुरंगे नाल जंग॥
१७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>१९
दोहरा: सतिगुर की सुनि बारता,
दारशकोह सुजान।
सज़तिनाम सिमरनि लगो,
बाणछति ब्रहम गिआन ॥१॥
कही कथा बिवहार की,
जिम दल जूटे जंग।
मिले जाइ अुमराव सभि,
देखति नौरंग संग१ ॥२॥
चौपई: नहि दिज़ली महि थिरता पाई।
कितिक दिवस बसि गिर के थांई।
अबि लवपुरि मैण जाअुण अगारी।
जुज़ध करनि कहु नहि दल भारी ॥३॥
सरब देश राजे रजपूत।
मिलि नौरंग संग कीनहु सूत।
पतिशाहित को सकल समाजू।
निज कबग़े महि कीनसि राजू ॥४॥
तोप जमूरनि की का गिनती।
न्रिप सभि करहि अगारी बिनती।
सरब रीति ते बधो समाजा।
लरिबे हित अनगन दल साजा ॥५॥
शाहिजहां पित को गहि लीना।
भ्राता एक कैद करि दीना।
दे करि खान पान तिन थोरा।
दिन प्रति देत कशट कहु घोरा ॥६॥
दुशट बिसाल सु नौरंग ऐसे।
नित छल बल को ठानति तैसे।
यां ते अबि लवपुरि कोजाइ।
पुन करिहौण जैसे बनि आइ ॥७॥
श्री हरिराइ सुनी सभि गाथा।


१(मरे) वेखदिआण नुरंगे नाल जा मिले।

Displaying Page 125 of 412 from Volume 9