Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) १४८

१८. ।बाल चोज॥
१७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>१९
दोहरा: इस प्रकार श्री सतिगुरू, बालिक लील्हा कीनि।
शाहुनि१ के सुत अनिक ही, मिलि खेलहि सुख लीन ॥१॥
कबिज़त: केई धनवान के सपूत आइ खेलैण तबि
बैस मैण बडेरे कुछ भाव बहु धारिईण।भनैण हाथ जोरि जोरि लोरि कै२ निहोर करि
निकटि हमारो बा तरू बिसतारईण३।
नाना रंग फूल हैण सु आलबाल मूल हैण४
सिकंध५ झुक झूल हैण फले सु फलु भारईण६।
अलप, बिसाल, पीत, सबग़, सु लाल दल७
मानो घन घटा घने संघ नेक सारईण८ ॥२॥
जामन जुगल९, बट१०, पीपर११, जूर तुंग,
बज़दरी१२ अनेक झुकी भार ते बिसाल की।
दाड़म१३, नुरंगी, बीज पूर१४ ते सुपारी बहु
खारक खरे हैण१५ खरी खिरनी सु डाल की१६।
आड़ू, अमरूद, कदलीन१७ के बगीचे बडे
फैल रहे, फालसे फले हैण फल जाल की१८।


१धनीआण दे।
२चाह करके। (अ) लभके।
३ब्रिज़छ बहुत फैले होए हन।
४मुंढां दे चुफेरे दौर हन।
५टाहणे।
६चंगे फलां नाल फलके भार नाल झुके हन।
७पज़ते।
८संघणीआण ते इकसार।
९जामळ दो तर्हां दे।
१०बोहड़।
११पिज़पल।
१२बेरीआण।
१३अनार।
१४निबू ।हिंदी, वीज पूर॥
१५छुहारे खड़े हन।
१६डालां नाल खिरनीआण लगीआण हन।
१७केले।
१८बहुते फलां नाल।

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