Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ४) १४९

१९. ।चंदू दी प्रिथीए ळ चिज़ठी॥
१८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ४ अगला अंसू>>२०
दोहरा: पहुची केतिक दोस महि,
सुधि सतिगुरु के पासि।
मिलि संगति अुतसव कीयो,
दुशट महां लखिनाश ॥१॥
चौपई: पंचांम्रित करिवाइ घनेरा।
सतिगुर को जस करहि अुचेरा।
बारि बारि सो शबद पठति।
जिसते सुलही मरो दुखंति ॥२॥
धीरज धारि भरोसा करिही।
लघु बिसाल कहि श्रीगुरु पुरिही१।
बडो दुशट को भयो बिनाशि।
हुइ निचिंत भोगहु सुख रासि ॥३॥
धंन धंन श्री अरजन गुरू।
बाक सिंघ जिन के रिपु रुरू२।
ब्रहम असत्र सम जथा कहंते३।
कोटि जतन ते बचहि न, हंते ॥४॥
जबि ते सुलही जर मरि गयो।
चिंतोदिध महि प्रिथीआ भयो।
गटी अनेक अुतार चढावहि।
निस बासुर झूरति दुख पावहि ॥५॥
-हुतो अलब सैल सम४ मोरा।
भावी बज़ज्र५ अचानक फोरा।
जिस ने मेरो मान बधायो।
ग्राम शाहु ते कहि दिलवायो ॥६॥
सदा चहति रहि करिबे आछो६।


१स्री अंम्रतसर दा छोटा बड़ा कहिदा है।
२जिन्हां दे बचन शेर रूप हन शज़त्र रूप म्रिगां लई।
३जिवेण ब्रहम असत्र होवे अुसदे समान बचन कहिदे हन।
४पहाड़ जेडा।
५भाई रूप बज़जर ने।
६भला करना चाहुंदा रहिदा सी।

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