Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन १) १५१

दरब सहंस्र गुणा सभि दैहैण ॥४८॥
खोयो राज न होहि जमज़यत१।
बसहि खालसे की हुइ रज़यत।
अपनो कारज आप बिगारा।
मूढ अजान हरख पुन धारा+ ॥४९॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम ऐने बैराड़न प्रसंग बरनन
नाम सपतदशमोण अंसू ॥१७॥


१फौजाण, इकज़ठ।
+तवा: खा: विच लिखिआ है कि बैराड़ इथोण चले गए ते दाना सिंघ २० साथीआण संे सेवा विच
रिहा। भाव इह कि मालवे विच सिज़ख राजे राज करनगे।

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