Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) २७

२. ।पातशाही लोड़। हरीड़॥
१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>३
निशानी छंद: शोभा श्री सतिगुरू की, जग भी बिसतारे।
सरब सिज़धि नौ निधि जे, ठाढी रहि दारे।
हिंदू तुरक तरीफकरि, मिलि कै हरखावैण।
रिदे करहि जिम कामना, सो तूरन पावैण ॥१॥
सतिगुर दाता नाम का, अुपदेश द्रिड़ंता।
आनि आनि दरशहि बहुत, जो चहि सु लभंता१।
शाहुजहां दिज़ली बिखै, बड राज कमावै।
तिस के निकटि तरीफ गुर, कहि बहुत सुनावैण ॥२॥
चार पुज़त्र तिस के भए, बड दार शकोहा।
वलीअहिद२ कीनो तिसै, बहु ठानसि मोहा।
शुजा मुहंमद दूसरो, है त्रिथी नुरंगा।
चौथे हुतो मुराद बखश, राखे निज संगा ॥३॥
दार शकोह बिसाल सोण, करि कै अुर द्रोहा।
नौरंग ने तिह बुरा किय, मन धारो क्रोहा।
शेर मुज़छ कतराइ कै, चावर महि पाई।
कहि कै तिस के दास को, करि दा खुलाई ॥४॥
भयो बडो बीमार तबि, होइ न अुपचारे३।
हुते नजूमि हकीम जे, करि करि सभि हारे।
दिन प्रति दुरबल होति सो, नहि मिटहि बिमारी।
शाहजहां चिंता महां, अुर प्रीति अुचारी ॥५॥
गन हकीम पतिशाहु के, नहि चलो अुपाई।
तबि सभिहूंनि बिचारि के, इम गिरा अलाई।
हरड़ आइ बडि तोल की, चौदैण सिरसाही।
इक मासे को लौणग हुइ, अनवावहु पाही ॥६॥
इस अंतर मुछ शेर की, बाहर निकसै है।
तबहि बिमारी जाइहै, जबि तिस को खै है।
जे हकीम हिकमति महत४, सो सकल कहंते।

१जो चाहुंदे हन सो मिलदा है।
२तखत दा हकदार, युवराज।
३इलाज।
४बड़े।

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