Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) १५४
१७. ।मरे दिज ळ जिवाअुणा ते ग़हिर देण दा कारन सुणना॥
१६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>१८
दोहरा: जानि खोट दिज दुसट को,
श्री गुर सहि न सकाइ।
क्रोध करो देखति भए,
जबहि सान म्रितु पाइ ॥१॥
कबिज़त: जैसो दुख पायो सान द्रजन महान दिज!
भयो प्रान हान अबि हेरति अगारी तोहि।
तैसे पाइ संकट बिसाल तातकाल फल,
मूरख अजान! जानि१ तेरो तन नाश होहि।
ऐसे गुर बैन भने सुने श्रौन मूढ बिज़प्र,
अुठो सूल तेही छन गिरो धर भयो मोहि२।
लिटति करति हाइ हाइ, न सहाइ अबि
परो अरिराइ३ दुखपाइ जो धरति द्रोहि ॥२॥
एक घटी सूल भयो, संकट बिसाल दयो,
फेर मरि गयो हाथ पाइनि४ पसारि करि।
मरे दोअू हेरि करि, बिसमे बडेर सभि
कहैण बाक प्रभू ने बचायो हित धारि करि।
पापी इन कीन कहां ठानि कै कपट महां
बिख को पिलाइ रहा, पीओ न, पुकार करि५।
अंस जगदीश की शरीर धरो आइ करि,
नदन तुमारो करामात को अुदार करि ॥३॥
आप अवतार तुम सम जायो आतमज६,
अपर जि होति मारि देति न बचति है।
ले गो इकाकी, बिख पाइ कै दधी को मूढ
ओज ते पिलाइ रहो, कोण हूं न अचति है७।
१जाण लै।
२अुसे खिन सूल अुठिआ ते मूरछत होके धरती ते डिग पिआ।
३अरड़ा करके।
४पैराण ळ।
५पुकार कीती (भाव गुरू हरिगोबिंद जी ने)।
६(आपणे) वरगा पैदा कीता है सपुज़त्र।
७नां पीती (स्री बालक जी ने)।