Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) १५५
२०. ।दाराशकोह कतल॥
१९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>२१
दोहरा: हरखो नौरंग दुरमती, शर्हा फास गरि जाणहि।
चाहति हति बड भ्रात को, ले मसलत सभि पाहि ॥१॥
चौपई: जहि दरवेश, कि निपुन मुलाने।
चलहि शर्हा महि, जो बह माने१।
सभि के निकटिपठावनि करो।
ले कागद भ्राता जिम धरो२ ॥२॥
शरा वहिर ऐसे इह चलो।
अबि लौ संकट नहि को मिलो।
मारनि अुचित लखहु बुधि साथ*।
लिखहु निशानी निज निज हाथ ॥३॥
सुनि नौरंग को साल मलाने।
मूढ जि नहि ुदाइ को जाने।
मारनि अुचितै लिखि लिखि दीनि।
नौरंग को डर अुर बहु कीनि ॥४॥
जे लोभी लपट कुड़िआरे।
लिखो सभिनि दीजहि इस मारे।
देश बिदेशनि जहि कहि सारे।
लिखि लिखि पठि दीने हलकारे ॥५॥
१जो शर्हा विच चज़लं वाले चतुर मुज़लां ते बहुती मंनता वाले दरवेश सन।
२भरा जिवेण पकड़िआ सी, कागग़ लै के लिख भेजिआ।
*दारशकोह वलोण औरंगग़ेब दे नाम इक रुज़का अज़ज तज़क किताबाण विच मिलदा है:- बरादरे मन!
पादशाहे मन! खिआले सलतनत असलन दर दिल न मांदह, शुमा ओ फरग़ंदांनि सुमा रा
मुबारिकबाद। यक खास खससो यक मकान मुतसर णराए सकूनत अता फुरमा, ताकि बगोशाइ
आफीयत निशसतह बचआए दौलत मौग़ुफ बाशम। जिस दा मतलब इह है- मेरे भराता जी!
मेरे पातशाह! बादशाही दा खिआल मेरे दिल विच अुज़का हीनहीण रिहा, तुहाळ ते तुहाडे पुतराण
ळ मुबारक होवे, इक खास इज़छा है कि इक निका जिहा मकान रहिं लई बखशो तां जो आराम
नाल बैठा तुहाडे लई दुआ करदा रहां। जिस दे जवाब विच औरंगग़ेब ने लिखिआ कि कतले
दुनीण मुलहिद कि दर रसाइल नविशताइ खुद कफरो इसलाम रा बरादरि साम खांदह वाजिबो
अनसब। अरथात- ऐहो जहे बेदीन-जिस ने आपणे लिखे रिसालिआण (पुसतकाण) विच कुफर ते
इसलाम ळ जअुड़े भरा लिखा है-कतल करना वाजब ते अुचित है। ।अु:नानक प्रकाश सं: ग:
स: गुरमुख सिंघ जी॥
इस तर्हां दे लेखां तोण पता लगदा है कि कवि जी दे लिखे हालात अुन्हां ळ सूफी फकीराण दे लेखां या
रवायतां तोण मिलदे हन।