Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) १५६

२२. ।श्री अंम्रितसरोण वज़ले॥२१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>२३
दोहरा: भई मसंदनि को खबर, -बसे न१ गुरू क्रिपाल।
खरे होइ हटि कै गए२, हमरी हेरि कुचाल- ॥१॥
चौपई: हरखति होइ निकसि पुन आए।
लेहि अुपाइन जो सिख लाए।
दरब घनो दुकूल बहु मोले।
वसतू अपर देहि सिख, सो लेण३ ॥२॥
सिज़खनि को मेला बड होवा।
मज़जहि हरिमंदर बर जोवा।
पंचांम्रित करिवाइ लिआवहि।
करि बंदनि अरदास अलावहि ॥३॥
मज़खं सिख कीनसि इशनान।
अधिक भावना अुर महि ठानि।
पहिरी पोशिश पुनहि नवीन।
पंचांम्रित करि४ संगे लीनि ॥४॥
श्री हरि मंदिर को तबि गयो।
हाथ जोरि नम्री बहु भयो।
नमसकार करि बारंबार।
पुन अरदास कराइ अुदार ॥५॥
पंचांम्रित को तबि वंडवाइ।
इकठो भे मसंद समुदाइ।
तिन सभि को पिखि मज़खं कहो।
तुम महि अधिक खोट मैण लहो ॥६॥
श्री गुरु कारन करन क्रिपाल।
चलि करि आए करनि निहाल।
तुम बेमुख हुइ दुरे घरनि मैण।नहि दरशन कीनसि तिस छिन मैण ॥७॥
नहि सनमान कीनि तिन केरा।

१(रामदासपुरे विज़च) ठहिरे नहीण।
२(स्री अंम्रित सरोवर पास) खड़े हो के मुड़ गए हन।
३ओह (मसंद) लैणदे हन।
४करवाके।

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