Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) १५८

२०. ।ग़ोर दी शर्हा कीतिआण तुरक नहीण बणदा॥
१९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>२१
दोहरा: *इक सिख गहि लीनसि तहां,
कैद करो बल नाल।
सुंनत करि, सिर केश हरि,
तज़दी१ कीन बिसाल ॥१॥
चौपई: कहि करि कलमा तबै पठायो।
तअू सिज़ख मन नांहि हलायो।
बल ते करी शर्हा तबि सारी।
खाने को खवाइ तिस बारी ॥२॥
ुसल कराइ अपनि बिधि तांहू।
गुर गुर जपै भले अुर मांहू।
सरब शर्हा करि दीनो छोर।
आइ बिसूरति सो गुर ओर ॥३॥
हुतो समां पठते रहिरास।
गुर पग बंदे है करि पास।
लगो दिवान महान निहारे।
हाथ जोरि सिख खरै अुचारे ॥४॥
मैण सिख हौण, साचे पतिशाहि।
रण महि लरति गिरो छित मांहि।
भई मूरछा होश न कोई।पहुचे तुरक आनि सभि कोई ॥५॥
छुटी मूरछा गहि ले गए।
शर्हा सरब को करते भए।
कहां करौण मैण अबै अुपाइ।
हिंदू जनम सिखी ध्रम जाइ२ ॥६॥
जिस बिधि रहै रखहु दुख पैहौण।
नतु मैण चिखा बनाइ जल हौण।
बूझो गुरू करी किस शर्हा?


*इह सौ साखी दी ३२वीण साखी है।
१ग़ोरावरी।
२मेरा हिंदू जनम है सिज़खी धरम जाणदा है।

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