Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ४) १५८२१. ।केसरी चंद दी प्रतज़गा॥
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दोहरा: सैलनाथ आए सकल, प्रथम केसरी चंद।
न्रिप हंडूर कटोचीआ, गालेरी भट ब्रिंद ॥१॥
चौपई: इज़तादिक सभि मिलि करि आए।
भीमचंद सनमान बिठाए।
सभि को ले संग गयो रसोई।
बसत्र अुतारि थिरे सभि कोई ॥२॥
चादर जामा पाग अुतारी।
एक अुपरना१ कर महि धारी।
चरन पखारति चौणके बरे।
निज निज आसन पर न्रिप थिरे ॥३॥
आगे सभि के धरि पनवारे२।
भात३ परोसो भली प्रकारे।
बहुर सलवंं नाना भांति।
सूपकार तबि धरि धरि जाति ॥४॥
खान लगे जबि कौर४ अुठाए।
कहिलूरी तबि कुछ मुसकाए।
देखि केसरी चंद दिशा को।
हास करति भाखति इम ता को५ ॥५॥
यज़धी दियो६ भात कहु खांे।
इस कारन घर छोडि पयांे।
किधौण अनदपुर हेतु छुटावनि।
लरि गोबिंद सिंघ गुरू हटावनि ॥६॥
इत आए? सभि देहु बताई।१साफा।
२पज़तलां।
३रिज़धे होए चावल।
४ग्राहीआण।
५तिस ळ।
६इक गंदी गाली दा संबोधन है जो हर पहाड़ीए दे मूंह ते चड़्हिआ हुंदा है। जे कदे कवी जी दा
इथे पाठ होवे यदधेतुस ते लिखारीआण दी अंजाणता ने गाल दा रूप दे दिज़ता होवे, तां
यदधेतुस दा अरथ है जिस कारन करके। अगे ग़ोर नाल फिर दुहराअुणदा है इस कारन
करके? ते फिकरा मुकदा है अंक ७ विच इत आए सभि देहु बताई।