Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरजग्रंथ (राशि ५) १५९

२०. ।मीआणमीर मिलाप॥
१९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>२१
दोहरा: श्री गुर हरि गोबिंद जी, कए प्रात इशनान।
खान पान करि कै प्रभू, बैठे रुचिर सथान ॥१॥
चौपई: ढरे दुपहिरे होई सुचेता।
सुंदर शसत्र सु बसत्र समेता।
ब्रिध सोण कहो बाक गंभीर।
मीआण मीर इहां बड पीर ॥२॥
तिन को मेल भयो कबि नांही।
निशचै ब्रहम गान के मांही।
महां शकति जुति चहहि सु करै।
तअू छिमा धीरज गुन धरै ॥३॥
ब्रिध ने भनो जि सिमरो मन मैण।
तौ दरशन दै हैण गुन जिन मैण।
जाम दिवस बाकी जबि रहो।
मीआण मीर प्रसंग सु लहो१ ॥४॥
दरशन को गमनो२ तजि थान।
श्री गुर सरब बारता जानि।
कहति शीघ्र ही हय मंगवायो।
हुइ अरूढ करि बेग चलायो ॥५॥
घर ते पीर थोर ई चले।
जाइ अगाअू सतिगुर मिले।
लोक बिलोकतिइम लखि पायो।
लेनि गुरू को आगे आयो ॥६॥
हेरि परसपर वधो अनद।
मीआण मीर मिले कर बंदि।
श्री हरि गोबिंद अुतरनि लागे।
गही रकाब शीघ्र हुइ आगे ॥७॥
हय पर चढे लिये चलि आयो।
हाथ रकाब संग इक लायो।


१जाण लिआ।
२(मीआण मीर) टुरिआ।

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