Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) १६०
१८. ।वज़डे घर, भाई सादा साधू॥
१७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>१९
दोहरा: बसति डरोली ग्राम महि,
कीने अनिक बिलास।
एक गाथ होई जथा,
सुनहु तथा सुखरास ॥१॥
घर वज़डे इक ग्राम महि,
गुर सिख बसहि तिखान।
रामदास सतिगुरू ते,
सिज़खी धरी महान ॥२॥
चौपई: छठे मास दरसन को जाइ।
जथा शकति धन भेटचढाइ।
सुनहि प्रेम करि गुर की बानी।
धरम किरत करि बनहि सु दानी ॥३॥
भअु१ अुर बिखै भाअु२ को धारै।
सतिगुर महिमा अधिक अुचारै।
श्री अरजन को सेवति रहो।
बपु बहु बरखन बय निरबहो३ ॥४॥
आकल कहहि तांहि को नामू।
मन को गुरमत महि बिसरामू।
तिस के ग्रिह निपजी इक कंनां।
पूरब जनम पुंन की धंना४ ॥५॥
सपत बरख जबि आकुल जानी।
कित सनबंध करौण मन ठानी।
दिज बुलाइ करि दयो पठाई।
करि शुभ थल मम सुता सगाई ॥६॥
फिरो कितिक थल मिलो न हांी५।
खोजति आयो पुरि तुकलांी।
१भै।
२प्रेम।
३सरीर दी आयू बहुते सालां दी निरबाही।
४धंनता जोग।
५बराबर दा वर।