Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुरप्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) १६१

२१. ।सरमद॥
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दोहरा: सरमद की सुंदर कथा, श्रोता सुनहु रसाल।
आतम को बज़खात++ भा, गानी संत बिसाल ॥१॥
चौपई: माता पिता धनाढ बडेर।
इक पुज़त्र जनमो तिन केरे।
बहु दुलारि तिन पारन कीना।
खान पान मन भावति दीना ॥२॥
तन महि आनि भई तरुनाई१।
बीसक बरसनि बैस बिताई।
भा परलोक मात पित केरा।
रहो इकाकी दरब घनेरा ॥३॥
पूरब जनम भाग बड जागे।
सतिसंगति कहु करिबो लागे।
संत बिदेशी अुतरनि हेतु।
दरब लगायहु रचे निकेत ॥४॥
कितहूं ते को चलि करि आवै।
चांप पाव निस बिखै टिकावै।
खान पान की सुधि लै आछे।
देति प्रयंक सुपति चित बाछे२ ॥५॥
सरब भांति की सेवा करै।
चांपहि चरन प्रेम को धरै।
सेद भए३ पंखा करि बायू।सीत लगे पावक दिपतायू ॥६॥
इज़तादिक के आनद देति।
टहिल करनि पर रहै सुचेत।
प्राति होति जबि संत पधारै।
हेत बिसरजन४ संग सिधारै ॥७॥


++पा:-आतम जाण को खात।
१जवानी।
२सौं लई। पलघ देणदा है जे चित दी चाहनां (नाल सौं)।
३मुड़्हका आइआण ळ।
४टोरन हित।

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