Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरजग्रंथ (राशि ११) १६२
२३. ।श्री गुरू जी दा बकालिओण कूच॥
२२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>२४
दोहरा: मज़खं करि इशनान को,
दरशन परसन१ कीनि।
पुन कराइ अरदास को,
चलो सु मती प्रबीन ॥१॥
चौपई: श्री गुरु तेग बहादर जित को२।
गमने हुते चलो तबि तित को।
अधिक प्रसंन होइ तिस छिन मैण।
महिमा सतिगुर की लखि मन मैण ॥२॥
सहिन शील३ जिन के न समाना।
सरब शकति धरि श्री भगवाना।
मग महि इम ठानति४ बडिआई।
पहुचो ग्राम गुरू जिस थाईण ॥३॥
वहिर ग्राम ते कीनसि डेरा।
वसतु गंभीर धरी तिस बेरा।
सरब भांति ते करि तकराई।
मज़द्र देश नर जानि खुटाई५ ॥४॥
मिलो गुरू संग बंदन धारा।
सभि प्रसंग भा तथा अुचारा।
लोभ मसंदन को धन केरे।
बेमुख भए कपाट६ सु भेरे ॥५॥
अजहु न शरधा जिन के भई।
कौन गुरू,पारुख नहि अई७।
मैण तरजन८ करि सुजसु अुचारा।
तबि मिलिबे हित इत पग धारा ॥६॥
१परसंा।
२जिस पासे।
३सहन दा सुभाअु।
४करदा होइआ।
५पंजाब दे लोकाण दी खुटाई जाणके।
६(हरिमंदर दे) तखते।
७कौं गुरू है (इह) प्रीखिआ नहीण होई।
८ताड़ के।