Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) २८
२. ।सीस कीरतपुर लिआअुणा॥
१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति १ अगला अंसू>>३
दोहरा: दिज़ली ते सिख प्रथम जो, गमनो आइसु लेय।
तेग बहादर सतिगुरू, पठो भेट को देय१ ॥१॥
सैया छंद: पैसे पंचहु श्री फल सुंदर
गुरता अरपनि की बिधि जोइ।
ले करि पंथ बिखै प्रसाथनो,
थिरो न किस थल, थकति न सोइ।
गुर आगा संदन असवारी,
चित अुतसाह सूत तबि होइ२।
पहुचो आणि अनदपुरि सो सिख
कुशल कहित, बूझहि नर कोइ ॥२॥
सवा पहिर दिन आयो तिस छिन,
बैठे श्री गोबिंद सिंघ राइ।
जगत समसत३ जु बरतहि४ नितप्रति
सो सभि चित महि बिदतहि आइ५।
कितिक मसंद बिलद चिंत जुति,चहुदिसि महि तिम सिख समुदाइ।
केचित रहति समीप कदीमीण६,
केचित नए दरस हित आइ ॥३॥
शीघ्र करति सिख पहुचो ततछिन,
देखि अुठे सतिगुर अगवाइ।
गुरता पहुची लखी, नमो करि,
पुन बैठे सिंघासन आइ।
धरि पैसे आगे सभि देखति,
ले श्रीफल झोरी महि पाइ।
१भेटा ळ देके।
२(मानो) गुरू जी दी आगा इह तां रथ दी असवारी सी ते (सिज़ख दे) चिज़त दा जो अुतसाह सी सो
रथवाही होइआ।
३सारे जग विच।
४जो वरतदा है।
५प्रगट हुंदा है।
६पुराणे।