Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) २८
२. ।चंदू तोण माला शाह ने मंगी॥१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>३
दोहरा: करी सलाम तमाम नर, भयो बहुत सनमान।
हाथ जोरि हग़रत भनै, दिये प्रान तुम दान ॥१॥
चौपई: मम हित दुरग बिखे सु प्रवेशे।
करो जाप तहि प्रेम बिशेशे।
हम ते सभि अजोगता भई।
तअू आप ने करुना कई ॥२॥
निस महि तरासति जबि मैण होवौण।
दुइ दिशि दारुन शेरनि जोवौण।
तबि मैण सिमरन करौण तुमारा।
हाग़र आनि देहु दीदारा ॥३॥
-मम हित जाप करति हैण बैसे।
तिन प्रताप ते दुख नहि कैसे-।
इम मन जानि धरौण मैण धीर।
रज़छक आप भए गुर पीर!१ ॥४॥
श्री हरिगोबिंद सुनि करि कहो।
गुर घर महि निशचा जिन लहो।
शरधा धरहि शरनि को आइ।
श्री नानक हैण कोण न सहाइ ॥५॥
सतिगुर घर सोण मेल जु अहै।
बडे तुमारे राखति रहे।
करि प्रसंन बर लेति भलेरे।
गुर बर ते सुख लहे घनेरे ॥६॥
जथा मुकर२ निरमल अति होवै।
जस मुख करि, तसि तिस महि जोवै।
केसर मलागीर३ जिन लायो।
रंग सुगंधति तथा दिखायो॥७॥
जे कारस को लाइ विशेखै।
१पूजनीय।
२शीशा।
३चंदन ।मलागर॥