Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ(राशि ८) २८
३. ।बिधी चंद॥
२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>४
दोहरा: ले करि आशिख मात ते, गुर रजाइ को पाइ।
लवपुरि के सनमुख चलो, श्री नानक को धाइ ॥१॥
निशानी छंद: गमनो मारग काज हित, तट आइ बिपासा।
हुते घाट परलोक तहि, बूझो तिन पासा।
गोइंदवाल समीप इहु, डेरा किन घाला?
लागति हैण तंहू अबहि, जिह शोभ बिसाला ॥२॥
करो बतावन तिनहु तब, हग़रत+ की दारा।
बेगमात आगवन भा, तिह सिवर अुतारा।
अबि लौ नहि प्रापत भई, आवति हैण पाछे।
तारी पुरब ही करति, थल सोधति आछे१ ॥३॥
सुनि हरखो परखो तबहि, -कारज बनि आवै।
बेगम पुर ते वहिर ही, नीकी बिधि पावैण-।
रहो तहां करि घात को, दिन टारन कीना।
रवि असतो फैलो तिमर, निस चंद बहीना ॥४॥देखति दाव बिचारतो, बेगम ढिग जाने२।
खरे पाहरू चहुं दिशिनि, बन करि सवधाने।
नहि प्रवेश विच हुइ सकहि, अवकाश न पावै।
आपस महि बोलति रहे, इक दुतिय जगावै ॥५॥
त्रास पाइ तसकरनि को, गहि सिपर क्रिपाना।
खरे रहे चहुदिशि भट, नहि आलस ठाना।
रहो तकावति दाव को, अविकाश निहारै।
बेगम लगि पहुचो न किम, बिधि अधिक बिचारै ॥६॥
तीन पहिर बीती निसा, सभि जाग परे हैण।
+हग़रत एथे वकत दे पातशाह लई वरतिआ जापदा है, जो शाहजहां है। पिछे माता जी कहिदे
हन चोरी जहांगीर दी बेगमां दी करके लिआ (देखो पिछला अंक ३३), सो जे जहांगीर दी बेगमां
दी कीती ते हग़रत तदोण ओह सी तां पुराणा किज़सा साबत हो गिआ। जे वरतमान दी कहांी है
कि माता नानकी दे कहे हुण चोरी करन गिआ तां अुह आपे झूठी साबत हो गई। आखेप करन
वाले दा हाफग़ा खराब है जो झूठे दा होइआ ही करदा है, सो शाहजहां दी दारा ते जहांगीर दी
बेगम दा वेरवा बी भुज़ल गिआ है।
इह साखी महिमाप्रकाश विच बी नहीण है।
१साफ करदे हां।
२जाण दा।