Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) १६३

१८. ।प्रिथीए दा झगड़ना॥
१७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>१९
दोहरा: सगरे सुनति प्रसंग को,
दिज मूरख चहूं ओर।
बोले श्री अरजन गुरू,
कीन जु तैण अघ घोर ॥१॥
सैया: सो प्रिथीए मुख पै कहि हैण१
तिह देहु मनाइ भनी जिम बानी।
पंच सै देनि कहे तुझ को,बिख की जिम तांही ने सीखि सिखानी।
पाप मती जिस के नित है चित,
ईरखा आगि हैण दाहि महानी।
संकट घोर घनो हुइ देखति
कीरति को सुनि कै सुख हानी ॥२॥
बिज़प्र कहो सुनि स्री गुर पूरन!
जोण तिसने मुझ को समुझाई।
तोण तिस आनन पै अुचरौण,
मम नाश कीओ अस सीख सिखाई।
मैण गुग़रान करौण तुमरे घर,
भूर कलक दीओ दुखदाई।
भावी ने प्रेरन कीनि बुरे महि,
दोनहु लोक मैण लीनि गवाई ॥३॥
दोहरा: श्री अरजन दिज सोण कहो,
महां मूढ का कीनि?
साहिबग़ादे मोल को,
पंच सहस करि दीनि ॥४॥
बहुर कहो संग दासि के,
धाम प्रिथीए जाइ।
आनहु साथ हकार कै,
ले करि हमरो नाइ ॥५॥
कबिज़त: करो सनमान बोलि मधुर महान


१मूंह तोण कहेणगा?

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