Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १६९
पौढि रहे जिन कीरति पावन।
बिज़दा पठो सु बिज़प्र बिशेा।सामुंद्रिक१ भी तिसने देखा ॥१६॥
सुंदर पद अरबिंद निहारा२।
जिन के हुतो+ सु पदम अकारा३।
पिखो दूर ते पुन ढिग आयो।
नीकी रीति बहुर दरसायो ॥१७॥
रिदे बिचारहि तरक४ अनेका।
-इह अुज़तम लछन पग एका।
स्रीपति बिशनु भए अवतारा५।
किधौण चज़क्रवरती न्रिप भारा ॥१८॥
इन दोइन बिन अपर न कोअू।
पदम रेख इमि धारहि दोअू-।
पौढे सुपत रहे तहिण जावदि।
रहो बिचारति दिजबर तावदि ॥१९॥
निसानी छंद: जागि अुठे श्री अमर जी, चलिबे६ करि तारी।
बिज़प्र निकट बैठति भो, देखति हित धारी।
लगे देनि तब दज़छना७, दिज जू! इह लीजै।
१सरीर दे चिन्हां तोण मनुख दे शुभ अशुभ दी विचार दज़सं वाली विदा।
२चरन कमल तज़किआ।
+स्री गुरू ग्रंथ साहिब जी विच श्री गुरू अमर दास साहिब जी दे सजे हज़थ विच भी कंवल दा चिंन्ह
लिखिआ है, यथा-
बारिजु करि दाहिंै सिधि सनमुख मुखु जोवै ॥ (सव म३ के)
इसे तर्हां पंचम सतिगुरू जी भी अुचारदे हन
मेरे हाथि पदमु आगनि सुख बासना॥(फुनहे म ५)
इथे चरनां विच भी पदम किहा है सो प्रतीत हुंदा है कि श्री गुरू अमर देव जी दे सफल
शरीर विच दोनोण थां पदम सी, इसे लई आप गुर अवतार हैन।
स्री क्रिशन जी दे केवल चरनां विच ही पदम सी यथा-
चरण कमल विच पदम है झिलमिल झलके वाणगी तारे।
वार भा गु १०-२३
३जिन्हां दे (चरनां विच) कवल दा चिंन्ह सी।
४दलीलां।
५विशळ दा अवतार हैन एह।
६चलंे।
७भेट।