Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) १६६
१८. ।श्राध निरणै॥
१७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>१९
दोहरा: श्री मुख तेजबि इम कहो,
सुनति शासतर बिज़प्र१।
बोले इक मत होइ के,
गुर समीप ते छिज़प्र२ ॥१॥
चौपई: बिज़प्र निमंत्रणि निस के करे३।
श्राध बिधी दोपहिरे ढरे४।
अुचित बिज़प्र को निज घर आनै।
जो प्रतिग्राही, ले न कुदानै५ ॥२॥
मूरति छाया दान न लेहि६।
अंग हीन कुलहीन न जेइ७।
महांदान८ को होइ न ग्राही।
तुला दान पर त्रिय नहि चाही९ ॥३॥
पातक सूतक तुला न दान१०।
तागहि जुवती भोगी आन११।
चोर न छलीआ दूत१२ न होइ।
छज़त्री करम न धारहि जोइ१३ ॥४॥
तकरी धरै न कुद्रब भोगी१४।
ग्रहन दान को लेइ न१५ रोगी+।
१शासत्री ब्राहमण सुणके बोले।
२छेती।
३ब्राहमण ळ निअुता रात ळ देवे।
४दुपहिर ढलदिआण करे।
५विधि पूरबक दान लैं वाला तां होवे पर कुदान लैं वाला ना होवे।
६मूरती दी छाइआ दा दान ना लवे (भाव छाया पात्र दा दान ना लवे)।
७...... ळ ना खुआवे (अ) जेहड़ा।
८प्रिथवी, हाथी, रथ, कंनां, सोने दी गां या घोड़े आदि दा दान।
९इसत्री दान दे बदलेअुसदे तोल विच धन लैं दा चाहवान ना होवे।
१०पातक सूतक ते तुला दा दान ना लवे।
११आपणी वहुटी छज़डके दूजीआण नाल भोग करन वाला ब्रहमण (योग नहीण)।
१२सूंहीआण।
१३छज़त्री करम जो (ब्राहमण) ना करदा होवे।
१४तज़कड़ी ना तोले ते कुद्रव ना खावे। ।कुद्रव=मास श्राब आदि॥।
१५लैं वाला ना होवे।
+पा:-सोगी, पुना:-भोगी।