Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) १७४
२४. ।जंग जारी॥२३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>२५
दोहरा: श्री सतिगुर जोधा बली, छोरति तीछल बान।
करहि एक ते नाश गन, गिरहि तुरक तजि प्रान ॥१॥
मधुभार छंद: लरिते सु बीर। बिधिते सरीर।
हुइ अज़ग्र धीर। प्रविशंति तीर ॥२॥
तुपकैण तड़ाक। गुलकाण सड़ाक।
लगि अंग फोर। अूकसैण न थोर१ ॥३॥
गिरते बिहाल। बहि श्रों लाल।
छुटके तुरंग। असवार भंग ॥४॥
गुर क्रोध धारि। बहु बान मारि।
टिकने न देति। बड जंग खेत ॥५॥
अुत पैणदखान। मुचकंति बान।
लगि काहु नांहि। निफले सु जाहि ॥६॥
बिसमै बिसाल। -कित जाहि जाल२-।
गुर बीर ब्रिंद। थिरते बिलद ॥७॥
नहि घाव खाहि। तिम ही दिखाहि।
तुरकान नाश। दिखते चुपास ॥८॥
रद३ पीस पीस। दल ब्रिंद ईश४।
सुभटानि प्रेरि। हुइ कै दलेर ॥९॥
जबि होति मार। गिरते सुमार५।
ठटकंतिहेरि। नहि हैण अगेर ॥१०॥
दिशि प्राचि६ मांहि। कुतबा लराहि।
जिस अज़ग्र बिज़प्र७। सर छोरि छिज़प्र ॥११॥
चहि बीच जानि। पुरि के सथान।
जबि हेल घालि। तजि शज़त्र जाल ॥१२॥
१थोड़ा बी नहीण अुकसदे।
२सारे (तीर) किथे जाणदे हन।
३दंद।
४पातशाह द।
५ग़खमी होके।
६पूरब।
७जाती मलक।