Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) १८३

२२. ।गोइंदवालोण करतार पुर॥
२१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>२३
दोहरा: सुंदर की माता तबै, भज़लनि बंस बथूनि१।
गई सभिनि को संग ले, बैठि बंदि कर दूनि२ ॥१॥
चौपई: सुंदर चंद मज़ल के संमति३।
कहो सभिनि ही सिर करि नम्रिति।
क्रिपा करहु राखहु निज डेरा।
कीजहि गोइंदवाल बसेरा ॥२॥
इस थल तुमरे रहे पितामा।
बहुत बरख लगि कीने धामा।
बहुर आप के पित जबि आवैण४।
मास दु मास सु बास बितावैण५ ॥३॥
तिम ही तुम भी मेलि रखीजै।
सुख सोण बास आपनो कीजै।
सुनि सभिहिनि ते गुरू क्रिपाल।
बोले देति अनद बिसाल ॥४॥
हमरी तो इस थल बुनियादि६।
बडे भए गुरु अमर प्रसादि७।
क्रिपा कटाख इहां ते पाइ।
कीटी ते गजराज बनाइ ॥५॥
जिस केबडे भाग जग होइ।
बसि पुरि तुम को सेवहि सोइ।
श्री गुर अमर बंस की सेवा।
करनि चहौण चित मैण नित एवा८ ॥६॥
गुरू हुते सभि शांति सरूप।
जिन के अचरज चलित अनूप।

१भज़ले बंस दीआण इसत्रीआण ळ।
२दोवेण हज़थ जोड़ के बैठी।
३अनुसार।
४जदोण वी आअुणदे सन।
५वज़सके बिताअुणदे सन।
६मुज़ढ।
७गुरू अमरदास जी दी क्रिपा नाल।
८इवेण ही।

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