Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) १८४
२०. ।पारधी इसत्री तोण मरद॥१९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>२१
दोहरा: इक दिन कलीधर निकट,
सिज़ख सिज़खंी ब्रिंद।
स्री जीतो तन तजन को,
करति प्रशंश बिलद ॥१॥
चौपई: गुर पतनी जग माता देवी।
ब्रहमरंधर तजि देह अभेवी१।
सभि ते सुनि कै बचनि क्रिपाला।
*श्री मुख ते बोले तिस काला ॥२॥
दोहरा: धंन नारी+ धन भजन है,
धन कलजुग जुग ईश२।
महां बिकारी जुग तरे
भजन तराए कीस३ ॥३॥
नारी दइआ अनत है
जाण जगु भीतर भाखि४।
खट शासत्र पड़++ किया करै
नाम जपति मन राखि५ ॥४॥
इस पर इक इतिहासि६ है
दया त्रिया जिम कीनि।
संगति सुनीअहि बारता
१ब्रहमरंध्र (भेद के) देह छडके (वाहिगुरू नाल) इक हो गई।
*सौ साखी दी इह ६९वीण साखी है।
+सौ साखी तोण पता लगदा है कि इह साखी नवीण चज़ली है, नबर ६९ है। सौ साखी ने इसळ पिछले
किसे प्रसंग नाल जोड़िआ नहीण।
२(भजन वान) इसत्री धंन है, भजन धंन है कलजुग धंन है ते जुग दा ईशर (गुरू नानक) धंन
है।
३(जिस विच) जगत देमहां विकारीण तरे हन, हां भजन ने (शुभ गुणां तोण नगिआण भाव) गुणहीनां
ळ वी तारिआ है।
।संस:, कीश=नगे। बाणदर॥।
(अ) बाणदराण ळ।
४इस जगत विच कही गई है कि नारी विच दइआ बड़ी है।
++पा:-पद।
५जिस ने नाम दे जापण विच मन रज़खिआ है अुस खज़ट शसत्र पड़्हके की करने हन।
६भाव कथा।