Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) १९१

२४. ।रणजीत नगारा बणवाअुणा॥
२३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति १ अगला अंसू>>२५
दोहरा: गयो न्रिपत गज को अरपि, चितवति गुरू बिहाल१।
जथा सुशील सरूप को, करति सराह बिशाल ॥१॥चौपई: पुरी अनद अनद बिलद।
करति प्रकाशनि गुरू मुकंद।
चली आइ जहि कहि की संगति।
नित नवीन गन बैठहि पंगति ॥२॥
आइ अकोरनि के अंबार।
देश देश के तुरंग अुदार।
पाइ हुकम गुर को गन दास।
रहनि लगे हरखति हुइ पास ॥३॥
शसत्र गहैण अज़भास कमावैण।
तीर तुपक तरवार चलावैण।
सभि जातिनि के बनहि सिपाही।
वधहि बीर रस बहु अुर मांही ॥४॥
केतिक करहि नौकरी आइ।
लेहि रुग़ीना धन गन पाइ।
भई फौज गुर संग हग़ारैण।
कहि जै कारा दरस निहारैण ॥५॥
बखशिश बखशहि गुर समुदाया।
अपनो जानि करहि बहुदाया।
तीखन शसत्रनि को गहिवावैण।
चपल बली हय देति धवावहि ॥६॥
नहीण दमामा२ दल महि३ चीना।
श्री सतिगुरू बिचारनि कीना।
-अबि दुंदभि चहीअहि बनिवायो।
हित अुतसाह बनहि बजवायो ॥७॥
रहहि सदन गुर सदा भविज़ख।


१गुरू जी ळ चितवदा (राजा) बिहाल हुंदा है। (प्रेमनाल)
२धौणसा।
३सैना विच।

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