Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) १९१

२३. ।शेर शिकार। कअुलां प्रति अुपदेश॥
२२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>२४
दोहरा: थंम अगारी बैठि करि, सतिगुर लाइ दिवान।
आइ रबाबी ढिग थिरे, करो शबद को गान ॥१॥
चौपई: जोण जोण पुरि महि गुर सुधि होई।
तोण तोण चलो आइ सभि कोई।
अरपि अकोरनि सीसनिवावैण।
दरशन करहि मोद अुपजावैण ॥२॥
क्रिपा द्रिशटि ते देखन करैण।
सभि की मनो कामना पूरैण।
संधा सोदर लगि तहि थिरे।
भोग पाइ बंदन को करे ॥३॥
अुठि सतिगुरु डेरे महि आए।
रुचि अनुसार असन कअु* खाए।
म्रिदुल सेज पर थिरे गुसाईण।
सुपति जथा सुख राति बिताई ॥४॥
रही जाम जामनि दुइ घरी।
अुठि करि सौच सरब ही करी।
श्री अरजन इक कूप बनायो।
शकरगंग तिह नाम बतायो ॥५॥
हित इशनान गए तिस थान।
लेकरि संग दास बुधिवान।
बंदन करि मज़जन तहि कीनि।
बैठे धरि कै धान प्रबीन ॥६॥
जिन सरूप को चितवन करिते।
बहुर गुरू बानी को ररते।
आदि सुखमनी अूचे सुर ते।
करति पाठ को प्रीती अुर ते ॥७॥
सिज़खनि केरि अुधारन कारन।
परहि रीति इम करहि अुचारन।
तहि बैठे प्राती हुइ गई।*पा:-अहारनि।

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