Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) १९३

२७. ।पैणदखान दा अंत ते अुधार॥
२६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>२८
दोहरा: खरे गुरू एकल पिखे, चित की चौप बधाइ।
पैणदखान हय चपल को, प्रेरो चलो फंदाइ ॥१॥
रसावल छंद: पिखैण सैन दोअू। लखैण -जंग होअू-।
लगैण डंक घाअू। सु बाजैण जुझाअू१ ॥२॥
वरोला तुरंगं२। बडे बेग संगं।
हुतो कोट छोटा। भटं कीनि ओटा ॥३॥
तहां भीच ठांढे। गुरू कोप गाढे।
पिखै पैणदखाना। कुदायो किकाना ॥४॥
परो पार जाए। नहीण पैर छाए।
पिखंते हिराना। बडो ओज ठाना ॥५॥
भयो लाख मोला। सु नामं वरोला।
चलाकी दिखाई। गुरू तीर जाई ॥६॥
लियो खैणचि खंडा। त्रिखी धार चंडा।
हटे और हेरे।नहीण होति नेरे ॥७॥
सभै चौणप संगा। दिखैण दुंद जंगा।
भयो पैणद नेरे। कहो बाक टेरे ॥८॥
गुरू जी! संभारो। जथा ओज धारो।
करो नांहि टारा। चितो मोहि मारा३ ॥९॥
दोहरा: सो पलटे को समो अबि, लै हौण, पकरौण तोहि।
शाहजहां के निकटि लै, तिहठां छोरनि होहि ॥१०॥
जौ जीवन चहु आपना, चलीअहि आगै होइ।
हग़रत संग मिलाइ करि, खता बखशि है सोइ ॥११॥
रसावल छंद: नहीण तो संभारो। जिते ओज धारो।
करो वार खंडा। बनै दोइ खंडा४* ॥१२॥
गुरू कोप धारे। सु वाकं अुचारे।
जु गीदी सु त्रासै। तकै शाहि पासै ॥१३॥


१जंगी वाजे वजदे हन।
२वरोला नाम वाला (पैणदे दे हेठला गुरू जी दा बखशिआ) घोड़ा।
३याद करो (जो तुसां) मैळ मारिआ सी।
४तुसाडा खंडा दो टुकड़े हो जाएगा।
*पा:-बनहि तोहि मंडा।

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