Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ४) १९४
२५. ।सुलबी दा नाश॥
२४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ४ अगला अंसू>>२६
दोहरा: सुलही भ्राता पुज़त्र१ इक, सुलबी नाम कहंति।
चंदू अर पतिशाहु को, सगरो सुनो ब्रितंत ॥१॥
निशानी छंद: अुतर पार२ जबि टिके निस, तंबू महि चंदू।
सुलबी सुलही के चितहि, अुर कशट बिलदू।
तम महि गमनो पास तिस, बूझी सुधि सारी।
हमरो रिपु अरजन गुरू, का करति अुचारी३ ॥२॥सुनि चंदू तरकति भयो, लायक बिन होए४।
बैर न चाचे को लियो, पर सुख सोण सोए।
मैण अुपाइ गहिबे करौण, दिन केतिक मांही।
बनि सहाइ जे दुख रिदे, छोरहिगे नांही ॥३॥
५सुनि दिवान! मुझ आन६, है सुधि हुती न तेरी।
हम दोनहु को मारने, बिधि सुगम बडेरी।
बायू बंन्ही बली बिब, बन बडो बिनाशै७।
हुकम दिवावहु शाहु ते, गुरु जाअुण अवासै८ ॥४॥
पहुचति पुरि मैण पकरि हौण, काराग्रह पावौण।
निस महि एकल को करौण, धर सिर९ अुतरावौ।
इहां शाहु लगि बात को, पहुचन नहि दीजै।
रहैण निकट धन दिहु तिनहि, अपने करि लीजै ॥५॥
जे करि को चिरकाल महि, सुधि पहुच बतावै।
करि फरेब बहु बिधिनि के, तबि बात मिटावै१०।
इह तेरे गर११ काज है, मारनि गर मेरे।
१सुलही दे भरा दे पुज़त्र।
२बिआसा तोण पार अुतरके।
३(अुहनां बाबत) तूं की (राइ)कहिदा हैण?
४(तुसीण) लाइक नहीण हो।
५सुलबी बोलिआ।
६कसम।
७हवा ते अज़ग दोवेण बली (रल जाण तां) वज़डा बण बी नाश हो जाणदा है।
८जावाण गुराण दे घर।
९धड़ तोण सिर।
१०(तूं) मिटावीण।
११गल।