Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ४) १९६
२६. ।बचिज़त्र सिंघ ने हाथी ळ नेग़ा मारना॥
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दोहरा: दोनहु दीरघ सूरमे, अपर सिंघ समुदाइ।
चले लरन के हेतु को, जहि रणखेत बनाइ ॥१॥
चंपकमाला छंद: दीरघ रौरा दै दिशि होवा।
चाहति हाथी को तबि ढोवा।
सिंघ गए घोरे असवारा।
लोहगड़ी को दार निहारा ॥२॥
नाहर सिंघं बीर बिसाला।
बीच थिरो लै सिंघनि जाला।
काशट प्रिशटा१ हाथ संभारे।
डालि दुगोरी है करि तारे ॥३॥
छोरति बैरी हेरति आए२।
दै अुतसाहं बीर बधाए।
श्री प्रभु हैण रज़छा करि भारी३।
नाम सु लीजै जै रण कारी४ ॥४॥
चंचला छंद: शेर सिंघ दूसरो सु,
जूथ नाथ५ बीच बीर।तार जंग खेत को, सु लोह कोट पौर तीर६।
सैन सैल नाथ की, बिसाल हेल घालि घालि।
मार मार बोलती, पुकार भूरि डालि७ डालि ॥५॥
श्री गुरू बिलोकते, अुतंग थान पै थिरंति।
जंग मैण अुमंग कै, तुफंग संग भंगयंति८।
गोरीआण दुओरियां, सु छोरियां सरीर फोर।
गेरियां घनेरियां, बिखेरियां जि लोथ घोर९ ॥६॥
१बंदूक।
२वैरी आइआ देखके गोलीआण छज़डदे हन।
३श्री प्रभू जी भारी रज़छा करन वाले होण।
४रण विच जै कराअुण वाला नाम (भाव गुरू जी दा नाम) लओ।
५जथेदार, सैनापती।
६लोहगड़ दे दरवाग़े पास सी।
७बहुती पुकार पा पाके।
८नाश करदे हन (वैरीआण ळ)।
९घनेरीआण लोथां डेगीआण जो भिआनक (तर्हां) खिलारीआण पईआण हन।