Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २००
पित सथान तिन करो निवास।
तैसे तुम थल अपर बनाइ।
बसहु तहां सभि बिधि सुख पाइ ॥३९॥
दासू दातू सदन रहैणगे।
पिखहिण न तुम इरखा न लहैणगे+।
नांहि त देखि प्रताप तिहारो।
जरहिण रिदे नहिण१, परहि बिगारो ॥४०॥
दोहरा: इस प्रकार कहि म्रिदुल बच, धीरज दई बिसाल।
दिन सो निसा बिताइकै, बैठे परम क्रिपाल ॥४१॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे श्रीअमर, श्री अंगद
प्रसंग बरनन नाम सपतदशमोण अंसू ॥१७॥
+पा:-पिखने करि तम इरखा न लहेणगे।
१जोर नहीण सज़कंगे।