Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २०२

चौपई: कई बार मैण आनि बसाए।
त्रास देति मारति अुजराए१।
तहां आपने चरन फिरावो।
क्रिपा करहु सो ग्राम बसावो ॥७॥
आप लेहु छिति२ बाणछति जेती।
को न मुग़ाहम३ होवहि तेती४।
इह मम जाचा पूरु५ क्रिपाला।
करहु बसावनि ग्राम बिसाला ॥८॥
श्री अंगद सुनि बिनती ऐसे।
बूझो भयो ब्रितांत सु कैसे?
कबि को डेरा प्रेतनि पायो?
किस प्रकार पुरि कोअुजरायो? ॥९॥
बैठे सकल प्रसंग सुनावहु।
मन बाणछति पुन गुर ते पावहु।
सुनि सतिगुर ते गोणदा बैसु६।
कहिन लगो बिरतांत जु हैसु ॥१०॥
श्री सतिगुर इमि भयो प्रसंग।
झगरा हुतो शरीकनि संग।
आपस महिण बहु बाद अुठावा।
बहु मिलि भी नहिण झगर चुकावा ॥११॥
दोनहुण दिश झगरति चलि गए।
दिज़ली जाइ प्रवेशति भए७।
तहां नाअुण को इमि ठहिरायो।
-धरम करहु८ निज पद९ लिहु पायो- ॥१२॥


१अुजाड़ दिज़ते।
२ग़िमी।
३रोक, रोकं वाला
।फारसी, मग़ाहम॥।
४इह पद पिछली तुक नाल है, जेती बाणछो तेती लओ।
५इह मंग पूरी करो।
६बैठिके।
७जा वड़े।
८सौणह चुज़को।
९थाअुण ।संस: पद = थां॥।

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