Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) २००
२४. ।कअुलां प्रलोक गमन॥
२३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>२५
दोहरा: जिम मद अुतरे होति सुधि१ तिम अज़गान निवारि।
जानो अपनि सरूप को अदभुत रिदै निहारि ॥१॥
चौपई: इक घटिका लगि बाक सुनाए।
सतिगुर गान दियो भ्रम जाए*?
मुज़द्रित नैन सरूप बिचारो।
दै घटिका लगि आनद धारो ॥२॥
पुन प्रीतम को हेरनि लागी।
धंन धंन गुरु! मैण बडिभागी।
जिस पद हेत जती ब्रहमचारी।
जोगी आदि कशट बहु धारी ॥३॥
सो मोकहु छिन माहि दरसायहु।
हौमैण दीरघ रोग मिटायहु।
धंन धंन सतिगुर गति नारी।
नमो नमो भव भंजनहारी! ॥४॥
गूड़२ गुपत ततकाल जनायहु।
कोट जनम को कशट मिटायहु।
हे सतिगुर! मैण भई सनाथा३।
इम कहि धरो चरन पर माथा ॥५॥
श्री हरि गोबिंद पुनहु बखाना।
तव तन अंत समां नियराना।
होहु कुशासन४ पर थिर अबै+।
मनहि टिकाअु छोर दिशि सबै५ ॥६॥
१जिवेण नशा अुतरिआण होश आअुणदी है।
*हुण तक कौलां अज़गान विच सी, इह खिआल करना दरुसत नहीण। हुण सरूप विच लीन है।
२गुज़झा।
३निहाल।
४दज़भ दे आसन ते।
+जिस ळ परमगती मिल गई है ते ब्रहम गान हो गिआ है कीह अुस लई अजे इस ब्राहमणी
वहिम दी लोड़ बाकी है कि कुशा दे आसन ते मरे ते जे पलघ ते मर जाए तां अुह ब्रहम गान
दौड़ जाएगा? इह बातां भ्रम मात्र हन, जापदा है कि राज दरबार दे ब्राहमण मुखीआण ने मलोमज़ली
पुआईआण हन या आखेपक हन।
५सभ पासिआण तोण मन ळ हटाके।