Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) २००
२८. ।असमान खान बज़ध॥
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दोहरा: पैणदखान जबि दीन है,
कीनसि बाक बखान।
श्री गुर तुमरे हाथ की,
मिसरी१ कलमा जान ॥१॥
चौपई: सुनति सनेह रिदै हुइ आयो।
पतिपारो* पुरब, अपनायो।
निज कर ग्रास पाइ मुख मांही।
अुज़तम वसतु देति नित जाणही ॥२॥
भांति भांति पोशिश पहिराइ।
भांति भांति के असन अचाइ।
पुनहि बिलोकि जिसहि हरखावैण।
दान मान दे नितत्रिपतावैण ॥३॥
तिस की दशा देखि दखवारी।
कमल बिलोचनि ते तजि वारी२।
बदन सेद जिस के बहु होवा।
तरफति परो घाम३ महि जोवा ॥४॥
सिपर साथ कीनसि तबि छाया।
होत बदन पर घाम२ मिटाया।
देखति खरे अश्र दिग झरैण।
पैणदखान के मुख पर परैण ॥५॥
जिस काशट को पार बधावै४।
१तलवार।
मिसर इज़क देश है, मिसरी = जमाई खंड, तलवार ते कलम त्रैए मिसर नाल सबंधत
होण करके मिसरी कहिलाअुणदीआण हन। मिसर अरबी पद है। तेरे हज़थ दी मिसरी (= तलवार) ळ
मैण कलमां जाणिआण है, इस विच धनी इह है, कलमा सारे दुखां दा नाशक मुसलमानां विच जिवेण
मंनीदा है, तिवेण मिसरी हकीमां ने सारे रोगां ळ शांत कारक मंनी है, सो मैण तेरी तलवार ळ
दुखनाशक ते मिज़ठी करके मंनिआण है। भाव आपदे हज़थोण मरना ही मेरा अुधार है, कलमेण ने मेरा
कुछ नहीण सारना।
*पा:-बपु धारो।
२जल।
३धुज़पे।
४जिवेण काठ ळ पाल के वधांवदा है (जल)।