Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) २०३२५. ।माता नानकी ते माता गुजरी जी ळ धीरज॥
२४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>२६
दोहरा: कितिक मास श्री सतिगुरू,
पटंे बिखै बिताइ।
-गमनहि अबि पंजाब को-,
अुर अभिलाख अुठाइ ॥१॥
चोपई: मात नानकी सोण तबि कहो।
हम प्रसथान आपनो लहो।
बडो देश पंजाब हमारा१।
तागो बीतो समा अुदारा ॥२॥
केतिक संमति इतहि बिताए।
पूरब बसे अधिक सुख पाए२।
अबि अनद पुरि देखहि जाई।
जो आवति३ हम दियो बसाई ॥३॥
तिसहि बसावनि करहि बिसाला।
नहि देखो बीतो चिर काला।
पुरि की सार संभालहि जाइ।
इम सुनि मात द्रिगन जल जाइ ॥४॥
केतिक संमत प्रथम बिताए।
बिछुरि रहे पूरब दिशि जाए।
चिरंकाल महि दरशन दीना।
अबि पुन चहहु पयानो कीना ॥५॥
देखनि को तरसति चित रहे।
तुम बिन किम धीरज अुर लहे।
सुनि सतिगुर म्रिदु बाक बखाने।
हम पंजाब अबि करहि पयाने ॥६॥
तहां बसहि जबिकेतिक काल।
करहि पठावन सुध दरहाल४।
१साडे वज़डिआण दा।
(अ) साडा पंजाब देश जो वज़डा है।
२पूरब वज़ल वज़स के बड़ा सुख पाइआ है।
३आणवदिआण।
४छेती ही।