Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) २०२२७. ।क्रिपाल महंत ने हयात खां ळ मारना॥
२६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>२८
दोहरा: भीखम ान, हयातखां,
त्रिती निजाबत खान।
फतेशाह इन के निकट,
दूत पठो मतिवान ॥१॥
पाधड़ी छंद: ततकाल अयो तिन बात कही।
तन कोण रण खेतहि देति नहीण१।
किस कारन आप बचावति हो?
गुलकाण सर कोण न चलावति हो? ॥२॥
-गुर तीर गवार- बखानति हैण२।
हज़थारनि भेव न जानति हैण-।
करि हेल मिलो दल कोण न अबै३।
लुट माफ करी, धन लेहु सबै ॥३॥
सुनि भीखनखान बखानि करो।
कुछ देरि नहीण लखि जंग परो४।
दस बीसकि बीर अहैण इन मैण।
करि घात अबै तिन को रण मैण ॥४॥
करि हेल फते, नहि चिंत करे५।
रण के हुइ* दाव अनेक तरे६।
इम भाखति, खान बटोर लिए।
इक हेल करो सभि ग़ोर दिए ॥५॥
सुनि खान हयात रिसो तबिहूं।
जुति भीखन खान पिखेसभिहूं।
करि तेग़ तुरंग धवाइ परो।
हति बानन कौ दल संग अरो ॥६॥
१भाव तनदिही दे नाल लड़ाई किअुण नहीण करदे।
२कहिदे साओ कि गुरू पास तां गवार हन।
३भाव हुण हज़ला किअुण नहीण करदे।
४जंग पिआ ही देखो।
५हज़ला करके फतह कराणगे चिंता ना करो।
*पा:-दुइ।
६अनेक तर्हां दे।