Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) २०३

२७. ।जैपुर॥
२६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>२८
दोहरा: तिह थल किसहूं दुशट ने,
नौरंग को समुझाइ।
बुत पूजनि की अधिकता,
जैपुरि महि बहु थाइ ॥१॥
चौपई: तहि जै सिंघ सवाई राजा*।
करे बहुत हिंदिन के काजा।
बडे बडे मंदिर बनवाए।
कंचन कलस महां छबि छाए ॥२॥
जिनहु बिलोकति शरधा जागै।
मूढनि के भी मन अनुरागै।
बहुत जीवका तिनहु बनाई।
जे बुत पूजति हैण चितु लाई ॥३॥
रुचिर सु प्रतिमा चतुर चितेरे।
रची चौप चित रुचिर घनेरे।
कंचन अलकार घरवाए।
मुकता झालर दर लरकाए ॥४॥
चारु चुकौन चौकीअनि रची।
शुभति जराअु खचन ते खची१।
चौर चमक जनु चिकने चीनसि।
ढोरति२, झोरति बिजनो लीनसि३ ॥५॥
दिनप्रति नए करतिअुतशाहु।
बादित बजहि अधिक धुनि जाणहू।
दुंदभि संख झांझ झनकंते।
मिलि कबि जै जै शबद अुठते ॥६॥
बुत आगे निम्री बहु होवैण।
हाथनि जोरहि समुख खरोवहि।
जै सिंघ आप जाइ धन देवै।

*देखो रासि १० अंसू ३२ अंक १५ दी हेठली टूक।
१जड़त नाल जड़ीआण होईआण।
२(चौर) ढुराणवदे सन।
३पज़खा लैके झुलांवदे हन।

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