Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २०६
बसिबे कारन रचहु अवासु ॥३१॥
सुंदर छरी सु चंचल करिते।
अमरदास को दीनसि कर ते१।
इहु ले जाहु समुख तिन होइ।
करहु दिखावनि रहहि न कोइ ॥३२॥
जहिण जहिण चरन तुहारो फिरिही।
होइ अशुभ तिस को शुभ करिही२।
निज निवास३ हित रचहु अवासु।
नर पिखि आवहिण करहिण सु बासु ॥३३॥
इह गोणदा खज़त्री धनवान।
करहि चिनावन महिल महान।
नाम इसीके परि* पुरि नामू४।
रचहु रुचिर बसिबे हित धामू ॥३४॥
करति फरेब सु दासू दातू।
सुनि प्रेतनि को इह डरपातू५।
नहिणन जानते गुरू प्रतापू।
करन हार को जानहिण आपू६ ॥३५॥
यां ते इनि को७ त्रासु महानो।
करन करावन गुरु तुम जानो८।
इमि समझाइ संग तिसु कीनो।
तबि श्री अमर चले रस भीनो ॥३६॥
प्रेम तरोवर अुर के मांही।
शरधा आलबाल है जाणही९।
गुर आइसु के निति अनुसारी।
१हज़थोण दिज़ती।
२अशुभ (ग़िमीण) ळ शुभ करनगे।
३रहिं लई।
*पा-धर।
४शहिर दा नाम (पवे)।
५डरदे हन।
६आपणे आप ळ करन हारा समझदे हन।
७इन्हां ळ।
८तुसीण करन करावन हारा गुरू ळ जाणो।
९दौर (अुह घेरा जिस विच पेड़ लाइआ जावे ते पांी ठहिरन दी थां होवे)।