Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २०८
हमरो पिता पुज़त्र हंकारैण१।
सेव भाव को रिदै न धारैण।
जिमि श्री नानक दीनसि दासु।
सिरीचंद तजि लखमी दासु ॥४४॥
तैसे इनहुण कीनि सभि जानी।
लहो परमपद२ सेवा ठानी-।
इज़तादिक सिज़ख आपस मांहि।
श्री गुर करहिण अनुचिती नांहि ॥४५॥
इति श्री गुरु प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे श्री अमर प्रसंग बरनन
नाम अशटदसमोण अंसू ॥१८॥
१पुज़त्राण दे जी विच इह हंकार है कि साडा पिता है इस लई रिदे विच सेवा दा भाव नहीण
रज़खदे।
२अुज़चा पद, भाव जगत गुरता दा पद।