Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ४) २०५
२७. ।केसरी चंद ळ मारना॥
२६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ४ अगला अंसू>>२८
दोहरा: जसुवारी न्रिप केसरी,
निज कुंचर अविलोक।
सैन खपावति फिरति है,
रिदै धारि बहु शोक ॥१॥
रसावल छंद: १-पदांती खपाए। जिते संग लाए२।
रहे शेख जोई। भजे तीर सोई३ ॥२॥
इकै ओर हाथी। बिनासे जु साथी४।
दुती ओर सिंघं। जथा भीम सिंघं५ ॥३॥
चमूं पुंज घाई। नहीण धीर पाई।
रहो दुरग लैबे। बनो जीव दैबै६ ॥४॥
गुरू सैन थोरी। बडो घालि ग़ोरी७।
हमै साथ लछा। बिलोकैण प्रतज़छा८ ॥५॥
नहीण जाइ जानी। भई पुंज हानी।
थिरे न पदांती। रिदै धीर हाती ॥६॥
तुरंगानि सैना। अबै जुज़ध ऐना९।
लरौण संग लै के। चढौण कोट धै के१०- ॥७॥
रिदै यौण बिचारी११। समूहं हकारी१२।बधे टोल केते। न्रिभै बीर जेते ॥८॥
मिले हेल घाला। छुटी बौनि जाला१३।
तड़ा ताड़ माची। कराली सु नाची ॥९॥
१इथोण केसरी दी सोच टुरदी है।
२जेहड़े (हाथी दे) नाल कीते सन।
३अुह हाथी दे कोलोण भज़ज गए।
४इक पासे तां (अुसदे) साथी हाथी ने मारे।
५भिआनक शेर वाणग।
६जिंद देणी बण गई।
७गुरू जी दी थोड़ी सैना ने ही बड़ा ग़ोर पाइआ है।
८इह गल सिंघ प्रतज़ख देखदे हन कि साडे नाल लखां हन।
९अजे जुज़ध भूमी विच है।
१०धावा करके किले ते जाके चड़ां।
११विचारिआ (केसरी चंद ने)।
१२सारिआण ळ बुलाइआ।
१३जाला बमणी = बंदूक।