Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) २०८

२९. ।मिहराण ते कुतब खां बज़ध॥
२८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>३०
दोहरा: बिधीचंद सोण गुर कहो,
लेहु संग असवार।
परहु बरोबर ते अबहि,
लीजै तुरक संघारि ॥१॥
रसावल छंद: करे सावधाना। सभै मेल ठाना।
इते मांहि आए१। महां शोर पाए ॥२॥
तुफंगानि छोरी२। चली ब्रिंद गोरी।
बडो हेल घाला। बमैण पुंज जाला३ ॥३॥
मन मेघ औना४। अुडायो सु पौना।
बरूदं प्रकाशै। छटा जैस भासै ॥४॥
कड़ंकार अुज़ठैण। मनो ग़ोर वुज़ठैण५।
क्रिखी बीर कुज़ठे६। परे भूमि लुठे७ ॥५॥
परी मार गोरी। कसौण पुंज छोरी।धवावैण तुरंगं। चलावैण तुफंगं ॥६॥
भयो सूर मेला। मनो फाग खेला।
पतंगी८ सुरंगा। भए श्रों संगा ॥७॥
परे एक बारी। बकैण मार मारी।
हलाहूल रेले। परी न पिछेले९ ॥८॥
गिरे बीर मानी। बडे शसत्र पानी।
भयो अंधकारा। वधी धूंम धारा ॥९॥
अुडी धूल छाई। दिनेशं छपाई१०।
बजे राग मारू। सु जूझैण जुझारू१ ॥१०॥


१आए (तुरक)।
२(सिखां ने)।
३बड़ी अज़ग निकली भाव बंदूकाण चलीआण।
४मानोण आअुणदे बज़दल ळ।
५ग़ोर नाल बरखा हो रही है।
६सूरमिआण रूप खेती कोही गई।
७लुछदे हन।
८लाल वकम दी लकड़ी दा रंग।
९पिछे (सैना) न पई।
१०सूरज ळ छुपा लिआ।

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