Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) २०९

२४. ।श्री गुरू रामदास जी बैकुंठ गमन॥
२३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २अगला अंसू>> २५
दोहरा: लखि तारी सतिगुरू की, तबि भानी बडिभाग।
हाथ बंदि बंदन करी, अुर अुमगा अनुराग ॥१॥
चौपई: सरब रीति समरथ सुख दाते!
जिन बडिभाग तिनहुण तुम जाते।
हलत पलत महिण होहु सहाई।
जिम चाहो तिम ठटहु गुसाईण ॥२॥
मैण रावर के संग सिधारौण।
तुम बिन नहीण जीवबो धारौण।
राग दैख बड हरख रु शोक।
इन जुति बसिबो है इस लोक ॥३॥
सुत प्रिथीआ अुतपात अुठै है।
देखति, दुख मेरो मन पैहै१।
अति अनद महिण बास तुमारो।
बसौण संग मैण चिंत निवारो ॥४॥
सुनि भानी ते कोमल बानी।
रामदास सति गुरू बखानी।
महांजसे२ सुनि भाग महांनी*!
अपर न त्रिय को तोहि समानी ॥५॥
श्री गुर अमरदास पित जिस के।
कौन पटंतर कहीअहि तिस के।
पुन तुव पर प्रसंन हम रहे।
मांनहिण तथा जथा बच कहेण ॥६॥
श्री अरजन भा पुज़त्र प्रबीना।
सोढी कुल जिन अुज़जल कीना।
राखी गुरता केरि जिठाई।
अपर बंस ते राखि हटाई ॥७॥
तेरो सफल जनम जग भइअू।१दुख पावेगा।
२हे बड़े जज़स वाली!
*पा:-महां जसु सनु भाग महानी = हे महां जस वाले दी सुपुज़त्री वडे भागां वाली। ।संस: सूनु: =
बेटी॥

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