Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) २१०

२८. ।साहिब चंद। दयाराम नद चंद दा युज़ध॥२७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>२९
दोहरा: खान तीन सरदार मैण,
इक जबि लीनो मारि।
अपर पठान प्रहार भे१,
मरे तुरंग अुदार ॥१॥
हरिबोलमना छंद: रिस धारि अरे। हथिआर करे।
गन बान चले। नहि होति खले ॥२॥
हति भालन ते२। रुकि३ ढालन ते।
गहि तोमर कौ। हनते अरि कौ ॥३॥
किह बाणह कटी। किस टांग टुटी।
कटि मुंड लए। बहु रुंड४ भए ॥४॥
करवार नची। रज श्रों रची५।
बहु घाइ लगे। तरफैण गिरगे६ ॥५॥
हय धावति हैण। भट घावति हैण।
मिलि बीर गए। असि ढाल लए७ ॥६॥
करि हेल घने। मुख मार भने।
कटि लोथ परी८। गन धूर भरी ॥७॥
निज सामन कौ। करि कामन कौ९।
निज प्रान दए। सुर लोक गए ॥८॥
तन जाणहि कटे१०। नहि पाछि हटे।
गन खान अरे। ततकाल मरे ॥९॥
तुपकान छुटे। अुर सीस फुटे।


१नाश होए (ते नाल....)
२भाले मारदे हन
(अ) सिराण ते मारदे हन।
३रोकदे हन।४बिनां सीस दे धड़।
५लहू नाल मिज़टी गोई गई।
६तड़फदे गिर गए।
७तलवार ढाल लैके।
८लोथां कज़टके डिग पईआण।
९आपणे मालक दा करके कंम।
१०तन कज़टे जाणदे हन (पर)।

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