Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन २) २११
२६. ।दोहां माता साहिबाण ळ खबर। बंदे दा घेरे विच आअुणा॥
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दोहरा: बालेराइ बिचारि कै, ले संग रुसतमराइ।
पहुचे अपने सदन महि, धन गन संग लवाइ१ ॥१॥
चौपई: अवचल नगर गए हरखाइ।
दरशन करो सीस को नाइ।
थाती दरबसरब दे तथा।
कही संतोख सिंघ संग कथा ॥२॥
अुठि अरदास करी गुर आगे।
धंन प्रभू सगरे थल जागे।
सिमरे हाग़र है जहि कहां।
अपनी पैज राखते महां ॥३॥
कितिक तिहावल करि वरतायो।
अपर दे को कार चलायो।
प्रचुर२ प्रसंग देश महि होवा।
गुर दरबार ब्रिंद ही जोवा ॥४॥
जथा शकति सभि भेट चढावैण।
करहि कामना नाना पावैण।
जो पंजाब देश को आए३।
दिलीपुरि महि सो प्रविशाए ॥५॥
मात सुंदरी साहिबदेवी।
जाइ नमो कीनी जुग सेवी४।
कुछ मिशटान अुपाइन राखी।
पिखि सिंघन को बूझति काणखी ॥६॥
तुम जग गुर के संगी अहो।
कबि ते तजि आए सच कहो।
सुनति सजल द्रिग जोरति हाथा।
गाथा कही मात के साथा ॥७॥
सतिगुर अपने सदन सिधारे।
१नाल लै के।
२फैलिआ।
३(अबचल नगर तोण) जो पंजाब देश ळ आए।
४(दोहां ळ जो) दोवेण कि सेवने योग हन। (अ) (इस) जुग (विच) सेवनेयोग।