Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २१६

जबि कबि अबि अरु आगे केई।
सेव बिखै मन लावहिण जेई।
तिन को बहुर न करिबो रहो१।
भोग मोख दोनहुण तिह लहो ॥४४॥
श्री गुर अमरदास के भ्राता।
आयो रामा तहां जमाता२।
जितिक भतीजे सो सभि आए।
गोइंदवाल बसे घर पाए ॥४५॥
इतादिक सनबंधी सारे।
आइ बसे गुर निकट सुखारे।
प्रापति सरबोतम बडिआई।
मानहिण मानव बहु सुख पाई ॥४६॥
सभि लायक सनबंधी जान।
आइ समीप बसे पुरि थान।
सतिगुर दे करि धीरज सबै।
निकटि बसावन कीने तबै ॥४७॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे गोइंदवाल प्रसंग बरनन नाम
अूनिबिंसती अंसू ॥१९॥


१होर करनी करन दी लोड़ नहीण रही।
२जुवाई।

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