Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) २१४
२५. ।पठां अुमराव सिज़ख होइआ॥
२४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>२६
दोहरा: सतिगुर करहि अखेर नित, चढहि सुभट समुदाइ।
हज़थारनि विज़दा करहि, जीव अनिक बन घाइ ॥१॥
चौपई: दुशट जीव बन के बहु मारे।
गो महिखनि को त्रास निवारे।
न्रिभै होइ नर त्रिंन चुगावैण।
जाहि प्राति बन, संधा लावैण ॥२॥
चोर जार को त्रास अुपंना१।
पुरि नर अुचरहि गुर धन धंना।
सतिजुग भा गुर राज मझारा।
तजी खुदाई नर डर धारा ॥३॥
सकल देश दाबे महि कीरति।
पुरि ग्रामनि महि भी बिसतीरति।
सुभट ब्रिंद सतिगुर ढिग गए।शसत्रनि बिज़दा महि निपुनए२ ॥४॥
इक दिन श्री सतिगुर भगवान।
ले निज संग सु पैणदे खान।
अुपबन महि गमने गुन खानी।
देखति शोभा ब्रिछनि महानी ॥५॥
मनहु नील घटि३ इह अुमडाई।
कै नीली मणि गिर समदाई४।
अरण बरण के५ फल बिसाला।
कतहूं पीति६ बिसद७ की माला ॥६॥
अनिक रंग की धात८ मनो है।
नीलो परबत इनहि सनो है१।
१(सतिगुरू जी दा) डर पैदा होया।
२चतुर होए।
३नीली घटा।
४या (इह) सारे नीली मणीआण पहाड़ हन।
५लाल रंग दे।
६पीले।
७चिज़टे।
८मानोण नीला परबत अनेक रंग दीआण धातूआण संे है।