Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 203 of 494 from Volume 5

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५)२१६

२८. ।श्री नानक मते दा हाल॥
२७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>२९
दोहरा: श्री गंगा आगवन लखि,
सहित सनूखा नद।
सभि बरात जुति प्रथम गे,
हरिमंदिर सुख कंद ॥१॥
चौपई: हाथ बंदि बंदन करि आछे।
दई प्रदज़छन फिर सुख बाणछे।
ले पुन गई सदन को गंगा।
करि कुलि रीति जथोचित संगा ॥२॥
वारि दरब को देति घनेरे।
सगरे हरखहि मुख गुरु हेरे।
बसत्र बाह के पीत सुहाए।
पिखहि जि देश बिदेशनि आए ॥३॥
करैण कामना मन मैण जैसे।
तिस छिनि दरस देइ गुर तैसे।
जे सिख अबि लगि धारैण धाना।
सुंदर बनो* केसरी बाना ॥४॥
कोण न कामना सिख सो लहैण।
जिन के रिदे सतगिुरू रहैण।
जल को वारि पानि करि गंगा।
मंदर के अंदर ले संगा ॥५॥
नुखा दूसरी जाइ बिठाई।
नारि बिलोकति हैण समुदाई।
नाम नानकी सुंदर रूप।
जो सभि ते बडिभाग अनूप ॥६॥
तेग बहादर जिन हुइ नदन।पौत्र बली बिदतहि जग बंदन।
जो निज दासनि दे छिति राज।
करहि बिनाशनि तुरक समाज ॥७॥
पिखहि पौत्र जिह बैस बडेरी।


*पा:नयो।

Displaying Page 203 of 494 from Volume 5