Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) २१६
३०. ।जंग-जारी॥
२९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>३१
दोहरा: सूर हग़ारक बचे जबि, कालेखांन बिचारि।
-लरोण आप गुरु संग मैण, मरौण कि लैहोण मारि- ॥१॥
भुजंग प्रयात छंद: बचे बीर जेते भए एक थाईण।
रिदे धीर खोई पिखे ते लराई।
नहीण देर लागी इती सैन जूझी।
हनी आनि कौनै नहीण जाइ बूझी१ ॥२॥
अुडैण ग्रिज़ध ब्रिज़धं, रड़ैण२ कंक बंकं।
भखैण मास गोमाय देखे अतंकं३।सिवा अूच टेरैण मिलैण सान भौणकैण।
किते घाइ खाए सुनैण नाद, चौणकैण४ ॥३॥
मुखं भे मलीन नहीण जंग चाहैण५।
-लरै जो अबै जीवतो कौन जाहै-।
तअू खान काले दिशा को बिलोकैण।
लरै नांहि कैसे, कहो कौन रोकै६ ॥४॥
गुरू बीर जेते बचे प्रान संगा।
करैण ओतसाहं सु है कै निसंगा।
कहैण अुच टेरैण हने शज़त्र सारे।
बजैण जीत लै कै गुरु के नगारे ॥५॥
महां मूढ शाहू, पठै सैन जोअू।
जगं ईश संगं चहै पुर होअू।
जिन्हो के अगारी बनैण हाथ जोरे।
तिन्हो साथ लोहा करै धारि ग़ोरे ॥६॥
चमूं ब्रिंद भेजी गई बार मारी।
तअू मूढ नाहीण करो भाअु भारी।
१किस ने आके मार दिज़ती है समझ नहीण आअुणदी।
२बोलदे हन।
३जिन्हां ळ देखके डर आअुणदा है।
४कितने ग़खम खाधे होए (पए हन ते गिज़दड़ीआण कुतिआण दी) आवाग़ सुणके त्रब्हकदे हन, (अ)
कितने (सूरमे जो कुछ) जखमी हन अुह आवाग़ां सुण के त्रब्हक रहे हन, अुन्हां दे......।
५मूंह मैले हन ते लड़ना नहीण चाहुंदे।
६कहो कौंरोके (काले खां ळ) कि हुण किसे तर्हां लड़े ना।