Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) २१७
२४. ।कवीआण नाल प्रशनोतर॥
२३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>२५
दोहरा: *सुपते+ निस महि सतिगुरू, मन भावति करि खान।
अंम्रित वेला महि अुठे, कीनो सौच शनान ॥१॥
चौपई: बसत्र शसत्र को पहिरनि करि कै।सुंदर अंग बिभूखन धरि कै।
सभा बिखै कलीधर आए।
चामीकरि प्रयंक जिस थाएण ॥२॥
आसतरन मखमल को कसियो।
जरी सहित गुंफन युति लसियो।
तिस पर थिरे बिसाल क्रिपाला।
आइ खालसा गन तिस काला ॥३॥
नमो करति अरु बैठति हेरे।
लगो दिवान आनि तिस बेरे।
हेम लशटका धारन करे।
आगे चोबदार तहि खरे ॥४॥
श्री मुख ते तबि हुकम बखाना।
गुनी कवीशुर पंडति नाना।
सभिहिनि को हकारि ले आवहु।
जहि जहि डेरे तहां सिधावहु ॥५॥
सुनि कै सभि ततकाल बुलाए।
तिन के दै हौण नाम बताए।
केशोदास पुज़त्र कुवरेश।
द्रों परब जिन कीन अशेश१ ॥६॥
गुणीआ, सुखीआ, बज़लभ आयो।
धान सिंघ गुर दरशन पायो।
इज़तादिक पहुचे कुछ और।
बंदति भे सोढी सिरमौर ॥७॥
सादर बैठे सभा मझारी।
*इह सौ साखी दी ८४वीण साखी है।
+पा:-सुपतहि।
१जिस (केशोदास दे पुज़त्र कुवरेश) ने महांभारत विचोण द्रों परबसारा (भाशा) कीता सी।